बड़ी बड़ी वो आँखें उनकी..
मुस्काती मटकाती ...
काली काली वोह आँखें उनकी...
झुक झुक के शर्माती...
कभी झपक के ..
कभी मचक के..
सब कुछ वो कह जाती...
प्यार भी उनका...
उनका गुस्सा... सब मुझको दिखालती...
घूर घूर के कभी डराती..
कभी.. सिमट के बस हंस जाती...
बड़ी बड़ी वो आँखें उनकी...
मुस्काती मटकाती...
आँखों से बातें..
और आँखों में रातें...
सब मुझको दिखलाती...
गहरी गहरी सागर सी...
नित नए फूल खिलाती ..
कभी आइना बन जाती ..
तो कभी तस्वीर दिखलाती ...
बड़ी बड़ी वोह आखें उनकी...
मुस्काती मटकाती ...
पायल की छन छन ...
घुंघरू की घन घन...
न जाने कैसे कैसे साज़ बजाती...
कभी नाचती ... इठलाती .. और
कभी धीमे से लजा जाती ...
बड़ी बड़ी वो आँखें उनकी...
मुस्काती मटकाती...
- उदित.
Thursday, April 29, 2010
Saturday, April 24, 2010
bus yun hi..
कभी कभी तन्हाइया भी बहुत कुछ कह जाती है...
कभी शोर भी चुप रह जाता है...
हम चाह कर भी कुछ कह नहीं पाते...
और वक़्त बस यूँ ही सरकता जाता है...
कभी कुछ dhundte रहते है हम कही..
कभी कुछ और ही मिल जाता है..
अभी न समझे हम कीमत जिसकी..
यह सरकता वक़्त समझा जाता है..
बस कभी देर सी हो जाती है ..
कभी हम जल्दी ही चाहते हैं...
जीवन की आपा धापी में...
हम कुछ खुशिया खोते जाते हैं...
यह वक़्त सरकता जाता है...
और हम कही पीछे रह जाते है...
आगे बढ़ना चाहे भी तो ...
कभी धक्का सा लग्ग जाता है...
कभी मन का बच्चा जागता है..
कभी बूढ़ा सा हो जाता है...
उछल कूद करता है कभी...
कभी लाठी ले के चलता है...
पर यह वक़्त यूँही बस यूँही सरकता जाता है...
उदित.
कभी शोर भी चुप रह जाता है...
हम चाह कर भी कुछ कह नहीं पाते...
और वक़्त बस यूँ ही सरकता जाता है...
कभी कुछ dhundte रहते है हम कही..
कभी कुछ और ही मिल जाता है..
अभी न समझे हम कीमत जिसकी..
यह सरकता वक़्त समझा जाता है..
बस कभी देर सी हो जाती है ..
कभी हम जल्दी ही चाहते हैं...
जीवन की आपा धापी में...
हम कुछ खुशिया खोते जाते हैं...
यह वक़्त सरकता जाता है...
और हम कही पीछे रह जाते है...
आगे बढ़ना चाहे भी तो ...
कभी धक्का सा लग्ग जाता है...
कभी मन का बच्चा जागता है..
कभी बूढ़ा सा हो जाता है...
उछल कूद करता है कभी...
कभी लाठी ले के चलता है...
चाहो तो खुश हो लो...
चाहे रोलो धोलो...
पर यह वक़्त यूँही बस यूँही सरकता जाता है...
उदित.
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